इसरो का पहला मानव मिशन 2021 में

इसरो का पहला मानव मिशन 2021 में


छोटा अखबार।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के प्रमुख के सिवन ने वर्ष 2020 के पहले माह में अपने लक्ष्यों की घोषणा कर दी। सिवन का कहना है कि वर्ष 2020 में गगनयान प्रोजेक्ट के साथ चंद्रयान 3 प्रोजेक्ट पर भी कार्य हो रहा है। इसरो प्रमुख का यह भी कहना है कि गगनयान अंतरिक्ष में इसरो का पहला मानव मिशन होगा। इसके लिए भारतीय वायु सेना के चार पायलटों को चुन लिया गया हैं। उनकी ट्रेनिंग जनवरी के तीसरे सप्ताह से रूस में शुरू होगी।



15 अगस्त 2018 को लाल क़िले से अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी कि भारत जल्द ही अंतरिक्ष में इंसानों को भेजने का प्रोग्राम लॉन्च करेगा इसके लिए 10 अरब करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। प्रधानमंत्री की इस घोषणा को जल्द पुरा करने के लिये इसरो ने 2020 से अपने प्रयोगों की गति बढ़ा दी है। आपको बत दें कि अंतरिक्ष में मानव मिशन की योजना पर इसरो वर्ष 2007 से ही कार्य कर रहा था। लेकिन बजट की कमी के चलते यह कार्य गति नहीं पकड़ सका। 2007 में इसरो के शक्तिशाली जीएसएलवी रॉकेट इंसानों को ले जाने वाले मॉड्यूल में सक्षम नहीं थे। इसरो के पास ऐसे रॉकेट या क्रायोजेनिक इंजन नहीं थे जो भारी क्रू मॉड्यूल का भार उठा सकें। साल 2014 में जीएसएलवी मार्क 2 रॉकेट बनने के बाद इसका समाधान हुआ। इसरो क्रायोजेनिक इंजन बनाने में भी सफल रहा है। इसरो ने फिर से जीएसएलवी मार्क 3 के ज़रिए गगनयान मिशन की तैयारी की है। जीएसएलवी मार्क 3 वहीं रॉकेट है जो चंद्रयान 2 को लॉन्च करने में इस्तेमाल हुआ था। मार्क 3 रॉकेट को तीन बार सफलतापूर्वक लॉन्च किया जा चुका है।



इसरो प्रमुख सिवन ने घोषणा की है कि अगर सब कुछ चलता रहा तो दिसंबर 2021 तक यह प्रयोग पूरा हो जाएगा। 2019 में अंतरिक्ष यात्रियों के चयन के अलावा, अंतरिक्ष यात्री की टीम ने क्रू मॉड्यूल का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है जो उन्हें लेकर अंतरिक्ष में जाएगा और फिर धरती पर वापस लेकर आएगा। परीक्षण के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों को किसी भी दुर्घटना से बचाने के लिए रॉकेट से उन्हें अलग करने के लिए ​अबॉर्ट टेस्ट भी सफलतापूर्वक किया गया गया।



अंतरिक्ष यात्रियों का चयन पहले से ही शुरू हो चुका था। भारतीय अंतरिक्ष शोध संगठन (इसरो) और भारतीय वायु सेना ने अंतरिक्ष यात्रियों के चयन, प्रशिक्षण और गगनयान कार्यक्रम के लिए अन्य आवश्यक पहलुओं के लिए 29 मई 2019 को एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। अनुबंध के अनुसार प्रक्रिया 12 से 14 महीने तक चलेगी। इसरो प्रमुख ने बताया कि चयनित अंतरिक्ष यात्रियों को भारत में बुनियादी प्रशिक्षण दिया जाएगा और आगे के प्रशिक्षण के लिए विदेशी अंतरिक्ष एजेंसियों से सहायता ली जाएगी।



अंतरिक्ष यात्रियों की चयन प्रक्रिया का काम इंस्टीच्यूट ऑफ़ एयरोस्पेस मेडिसिन कर रही है। इसने 1957 में भारतीय वायु सेना के एक सहयोगी के रूप में काम शुरू किया था। यह पायलटों को प्रशि​क्षित करने में भारतीय वायु सेना की मदद कर रहा है। इस कारण अंतरिक्ष यात्रियों के चयन का काम इस एजेंसी को सौंपा गया। अंतरिक्ष में जाने वाले अंतरिक्ष यात्री अच्छे पायलट होने चाहिए। इसके अलावा उनकी पृष्ठभूमि इंजीनियरिंग की भी होनी चाहिए। पहले अंतरिक्ष यात्रियों के चयन के लिए उत्साही लोगों से आवेदन मांगे जाते हैं।



इस उद्देश्य के लिए भारतीय वायु सेना के पायलट विभाग में आंतरिक रूप से अधिसूचना जारी की जाएगी। आवेदनकर्ताओं का मूल्यांकन किया जाएगा और योग्य उम्मीदवारों को चयन किया जाएगा। चयनित प्रत्याशियों के अंतरिक्ष यात्रा के लिए उनके शारीरिक योग्यता जाँच के लिए कुछ मेडिकल टेस्ट किए जाएंगे। दूसरे चरण में चयनित पायलटों का शारीरिक प​रीक्षण किया जाएगा। जो शारीरिक टेस्ट में चयनित हो जाएंगे उनका चयन बुनियादी अंतरिक्ष परीक्षण के लिए किया जाएगा। इंस्टीट्यूट ऑफ़ एयरोस्पेस मेडिसिन एयर कॉमर्स ने ऐस्ट्रनॉट सलेक्शन एग्रीमेंट पर कहा कि वे 30 भारतीय वायु सेना के पायलटों में से शौक़ रखने वाले का चयन करेंगे। उनमें से 15 को अंतरिक्ष यात्रियों के रूप में बुनियादी प्रशिक्षण दिया जाएगा और आख़िर में नौ का चयन किया जाएगा और उन्हें विदेश में पूर्णकालिक अंतरिक्ष यात्री का प्रशिक्षण दिया जाएगा


 


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