गहलोत की गद्दी पर फेवीकोल लगा है या उनके नीचे?
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गहलोत की गद्दी पर फेवीकोल लगा है या उनके नीचे? सुरेन्द्र चतुर्वेदी छोटा अखबार। राजनीति में कुछ भी हो सकता है। कुछ भी यानि कुछ भी। सुई में धागे की तरह हाथी भी निकल सकता है। कम से कम कांग्रेस में तो यही हो रहा है। कल तक एक दूसरे की प्रभुसत्ता को मिट्टी में मिला देने की कसम खाने वाले अशोक गहलोत और सचिन पायलट टिकिट के बंटवारे में लगभग एक मत हो गए हैं।गहलोत ने कह दिया है कि मानेसर के बाड़े में बग़ावत करने वाले अधिकांश विधायकों को पुनः टिकिट दिया जा रहा है तो सचिन उनसे दो क़दम आगे निकल कर कह रहे हैं कि जिताऊ उम्मीदवार कोई हो उसे टिकिट दिया जाना चाहिए भले ही उसने सोनिया जी की अवमानना ही क्यों न की हो। ज़ाहिर है कि सचिन अब शान्ति धारीवाल, महेश जोशी और धर्मेन्द्र राठौड़ को टिकिट दिए जाने के विरोधी नहीं। अंदर खाने सचिन और गहलोत यह समझ गए हैं कि एक दूसरे का साथ नहीं दिया गया तो नुक़सान दोनों का ही होगा। अशोक गहलोत अच्छी तरह से जानते हैं कि सचिन पायलट मुख्यमंत्री बनने का जो सपना देख रहे हैं उसके लिए उनके पास इस बार भी संख्या बल उनके मुक़ाबले नहीं आ सकेगा। उनकी गहलोत अपनी बोई हुई शानदार फ़सल को ख़ुद के ल