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Showing posts from May 15, 2020

श्रम कानून में संशोधन, काम के घंटों को आठ से बढ़ाकर 12 घंटे करने की योजना

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श्रम कानून में संशोधन, काम के घंटों को आठ से बढ़ाकर 12 घंटे करने की योजना छोटा अखबार। देश में कार्यरत श्रम मामलों की स्थाई समिति ने नौ राज्यों से श्रम कानूनों में किये बदलावों को लेकर जवाब तलब किया है। समाचार सूत्रों के अनुसार बीजू जनता दल के सांसद और स्थाई समिति के अध्यक्ष भर्तृहरि महताब ने कहा है कि श्रमिकों के अधिकारों का हनन किसी भी कीमत मंजूर नहीं है। समिति ने उत्तर प्रदेश, गुजरात मध्य प्रदेश, गोवा, हिमाचल प्रदेश, असम, राजस्थान और पंजाब से जवाब तलब किया है कि देश में उद्योगों को बढ़ावा देने के लिये श्रम कानूनों को कमजोर कैसे किया जासकता है। इस बात का जवाब महताब ने अपनी पार्टी शासित ओडिशा सरकार से भी तलब किया गया है। बता दें कि उपरोक्त राज्यों में कोविड—19 से तालाबंदी के कारण तहस नहस हुई आर्थिक गतिविधियों को गति प्रदान करने और व्यापारियों को निवेश के लिये आकर्षित करने के लिये श्रम कानूनों में संशोधन कर कमजोर किया है। पंजाब, हिमाचल प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों ने श्रम कानून में संशोधन कर काम के घंटों को आठ से बढ़ाकर 12 घंटे करने की योजना बनाई है। वहीं दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय श्रम सं

20 लाख करोड़ का पैकेज, निर्मम तानाशाह बनने की तरफ मजबूत कदम

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ऋषिकेश राजोरिया    वरिष्ठ पत्रकार  20 लाख करोड़ का पैकेज, निर्मम तानाशाह बनने की तरफ मजबूत कदम छोटा अखबार। आदरणीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कोरोना जनित अव्यवस्था के बाद आत्मनिर्भर भारत अभियान के नाम से जो 20 लाख करोड़ रुपए का आर्थिक पैकेज घोषित किया है, वह उनका विश्व में सबसे लोकप्रिय तानाशाह बनने की ओर एक मजबूत कदम है। इसके साथ ही यह लोकतंत्र के प्रति आस्था रखने वाले लोगों के लिए एक बड़ी चुनौती भी है। मोदी के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से शिक्षित हिंदुत्व के नाम पर बुद्धि का दुरुपयोग करने वाले एक-दो करोड़ लोगों की फौज है, जिनकी सक्रियता से वह प्रधानमंत्री पद प्राप्त करने में सफल हुए हैं।  प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी को यह लगने लगा है कि इस देश पर शासन करना बहुत आसान है क्योंकि यहां की जनता वादे सुनकर और प्रचार में बहकर वोट दे देती है। शासन संभालने के बाद कौन देश का भला कर रहा है और कौन लोकतंत्र की भावना के साथ विश्वासघात कर रहा है, इस पर जनता ध्यान नहीं देती। सरकार चलाने वाले अधिकारियों में ज्यादातर सत्ता के प्रति समर्पित होते हैं। वे प्रधानमंत्री के इशारे पर लोकतंत्र का मजाक ब