पत्रकारों के आवंटित प्‍लॉट रोकना सरासर अन्‍याय सुप्रीम कोर्ट तक के निर्णय हैं नजीर

 पत्रकारों के आवंटित प्‍लॉट रोकना सरासर अन्‍याय, सुप्रीम कोर्ट तक के निर्णय हैं नजीर

रूपेश टिंकर


छोटा अखबार।

पिंकसिटी प्रेस एनक्‍लेव, नायला पत्रकार नगर के आवंटित प्‍लॉटों के पट्टों में जारी गतिरोध न्‍यायपालिका की नजर में भी 571 आवंटी पत्रकारों के साथ सरासर अन्‍याय है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एन वी रमणा ने भी 25 अगस्‍त, 2022 को दिए अपने निर्णय में कहा है कि अल्‍प वेतन भोगी पत्रकारों के वर्षों पहले आवंटित हो चुके प्‍लॉट रोके नहीं जाने चाहिए। वहीं इसी मामले में पूर्व में आए हैदराबाद हाई कोर्ट के डीबी बेंच के फैसले में भी पत्रकारों को आवंटित प्‍लॉट के कब्‍जे देने के लिए तेलंगाना सरकार को आदेश दिए गए थे और कहा था कि नागरिकों को सूचनाओं से अवगत कराने वाले पत्रकारों की परेशानियों का हल होना चाहिए। पिंकसिटी प्रेस एनक्‍लेव, नायला के मामले में साल 2013 में लगी पीआईएल में राजस्‍थान हाई कोर्ट ने भी सरकार को निर्देश दिए हैं कि पत्रकारों के लिए बने नियम 1995 की पात्रता रखने वाले योग्‍य पत्रकारों को प्‍लॉट दिए जाने चाहिए। 

नायला पत्रकार नगर की आवंटन प्रक्रिया के दौरान राज्‍यादेश का उल्‍लंघन कर ब्रोशर में छपी अधिस्‍वीकरण प्रमाण पत्र की आवश्‍यकता को तो हाई कोर्ट ने भी नियम 1995 की पात्रता ही माना है, लेकिन फैसले की नासमझी के फेर में योग्‍य और पात्र पत्रकारों के अधिकारों का भी हनन किया जा रहा है। खुद राज्‍य सरकार और जेडीए न्‍यायालय में दिए अपने प्रार्थना पत्र में इसे लिपिकीय त्रुटि करार दे चुके हैं और न्‍यायालय ने सभी तथ्‍यों को रिकॉर्ड पर लेते हुए विधिसम्‍मत और जारी नियमों के अनुसार कार्यवाही करने को कह दिया था, तब भी 10 साल से आवंटी पत्रकारों के साथ न्‍याय नहीं किया जा रहा है। 

25 अगस्‍त को माननीय सीजेआई एन वी रमणा की पीठ ने केस नं. 22308/2021 में निर्णय सुनाते हुए कहा है कि हैदराबाद के 1100 पत्रकारों के साल 2008 में आवंटित हो चुके प्‍लॉट के कब्‍जे देकर उन्‍हें निर्माण स्‍वीकृति दी जानी चाहिए। पीठ ने यह भी कहा कि 1100 पत्रकार हैं, जो महज 8 से 40 हजार रुपए प्रतिमाह का अल्‍प वेतन पाते हैं, उन्‍हें जमीन के छोटे टुकड़े दिए जा चुके हैं और वे इसके लिए भुगतान भी कर रहे हैं तो क्‍या हम कह सकते हैं कि यह कोई चेरिटी है। निर्णय में पीठ ने कहा है कि हम पत्रकारों को प्‍लॉट के कब्‍जे लेने और निर्माण करने की स्‍वीकृति देते हैं। माननीय सीजेआई ने पत्रकारों के खिलाफ पैरवी कर रहे दिग्‍गज अधिवक्‍ता प्रशांत भूषण की दलीलों को भी खारिज किया है। 

इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट से पहले जुलाई, 2018 में हैदराबाद हाई कोर्ट की खंड पीठ ने भी कहा है कि पत्रकारों को हो चुके आवंटन को सरकार गलती से नहीं कह सकती। हाई कोर्ट ने तो इन प्‍लॉट आवंटन के खिलाफ लगी पीआईएल को ही खारिज किया है। हैदराबाद हाई कोर्ट की खंड पीठ ने तो यहां तक कहा है कि पत्रकार अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता के मौलिक अधिकार के तहत नागरिकों को सूचनाएं पहुंचाते हैं और इसी कारण उन्‍हें सपोर्ट भी दिया जाता है। 

गौरतलब है कि हैदराबाद में 1100 पत्रकारों को वर्ष 2008 में प्‍लॉट आवंटित हुए थे, जिसे बाद की सरकारों ने कब्‍जे रोकने का प्रयास किया था। लम्‍बी न्‍यायिक लड़ाई के दौरान अनेक पत्रकारों का देहांत भी हो गया। अंत में साल 2018 में हैदराबाद हाई कोर्ट में प्‍लॉट आवंटन के खिलाफ लगी पीआईएल खारिज हुई। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में भी मामला पहुंचा, जिसमें 1100 पत्रकारों के आवंटित प्‍लॉट उनके जायज हक साबित हुए हैं। 

राजस्‍थान में भी 571 पत्रकारों को साल 2013 में पिंकसिटी प्रेस एनक्‍लेव, नायला में प्‍लॉट आवंटित हो गए थे। जिसके पंजीकरण शुल्‍क के रूप में जेडीए में सभी के 10-10 हजार रुपए भी जमा किए जा चुके हैं। सभी 571 आवंटित पत्रकार आज भी जेडीए की वेबसाइट और रिकॉर्ड में प्‍लॉट मालिक के रूप में दर्शाए गए हैं। इसके बावजूद उन्‍हें पिछले 10 साल से डिमांड नोट और कब्‍जा पत्र जारी नहीं किए जा रहे हैं। 

मामले में राजस्‍थान हाई कोर्ट ने अपने निर्णय में कहीं भी प्‍लॉट आवंटन को गलत नहीं बताया है। मामले में लगी पीआईएल के निर्णय में कोर्ट ने जेडीए से सभी आवंटियों की पात्रताओं को पत्रकारों के लिए बने नियम 1995 के अनुसार पुन: जांचने को कहा था। न्‍यायालय के 3 जुलाई को आए पहले निर्णय में अनेक तथ्‍य रिकॉर्ड से छूट गए थे, जिन्‍हें बाद में जेडीए के प्रार्थना पत्र के बाद रिकॉर्ड पर भी ले लिया गया। इन तथ्‍यों के अनुसार सभी आवंटी पत्रकारों का चयन राज्‍य स्‍तरीय संवैधानिक कमेटी ने राज्‍य सरकार द्वारा प्रदेश भर में जारी पत्रकार आवास योजना की पात्रताओं के अनुसार किया था। इन पात्रताओं में नियम 1995 की पात्रताएं भी  शामिल थी, जिसमें पत्रकार होने की परिभाषा 5 वर्ष की सक्रिय पत्रकारिता का अनुभव भी शामिल था। इसके बावजूद 10 साल से आवंटी पत्रकारों को डिमांड नोट जारी कर कब्‍जा पत्र नहीं दिए जा रहे हैं।

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