Political News: आक्रोशित जाट : बीजेपी की खड़ी करेंगे खाट , सतपाल मलिक और धनखड़ का घोर अपमान

Political News: आक्रोशित जाट : बीजेपी की खड़ी करेंगे खाट , सतपाल मलिक और धनखड़ का घोर अपमान


-महेश झालानी

छोटा अखबार।

सत्यपाल मलिक अब नहीं रहे। एक बेबाक, निर्भीक और सच्चे किसान समर्थक नेता का अंत हो गया। लेकिन अंत से भी बड़ा सवाल ये है कि उनके साथ अंतिम विदाई में जो व्यवहार हुआ, वह किसी भी लोकतंत्र में एक बड़े नेता के साथ शोभा नहीं देता। एक पूर्व राज्यपाल, पूर्व मुख्यमंत्री और किसान आंदोलन के दौरान सरकार के खिलाफ बोलने वाले विरले नेताओं में शामिल सत्यपाल मलिक को जब अंतिम विदाई दी गई, तब न कोई तिरंगा, न गार्ड ऑफ ऑनर और न ही कोई केंद्रीय मंत्री उनके पास अंतिम सलामी देने आया। यह वही सत्यपाल मलिक थे जिन्होंने खुले मंच से सरकार की आलोचना की, किसानों के हक में खड़े हुए, और अपनी कुर्सी की परवाह किए बिना अपनी बात कही। शायद यही कारण था कि केंद्र सरकार ने उन्हें जीते जी उपेक्षित रखा और मरने के बाद भी औपचारिकता निभाने की जरूरत नहीं समझी। यह घटना सिर्फ एक व्यक्ति का अपमान नहीं, बल्कि पूरे जाट समाज की अस्मिता पर चोट है। हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश, ये वो क्षेत्र हैं जहां जाट मतदाता राजनीतिक दिशा तय करते हैं। और जब इसी समाज का सबसे मुखर चेहरा इस तरह विदा किया जाए, तो आक्रोश स्वाभाविक है।

मानो इतना ही काफी नहीं था कि जगदीप धनखड़ का नाम सामने आ गया । देश के उपराष्ट्रपति पद पर बैठे एक और जाट नेता को पार्टी नेतृत्व के दबाव में इस्तीफा देना पड़ा। सूत्रों की मानें तो धनखड़ की चुप्पी लंबे समय से सवालों के घेरे में थी, और अब उनके अचानक पद छोड़ने से साफ है कि उन्हें किनारे लगाया गया। दो-दो जाट नेताओं के साथ हुए इस व्यवहार ने भाजपा की मंशा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या भाजपा अब जाट नेतृत्व को बोझ मानने लगी है? क्या जो नेता सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हैं, उनके लिए पार्टी में कोई जगह नहीं? 
इस पूरे घटनाक्रम के बाद जाट समाज में गुस्सा साफ देखा जा सकता है। यह गुस्सा सिर्फ भावनात्मक नहीं है, यह राजनीतिक जमीन पर भी असर डालने वाला है। सत्यपाल मलिक की उपेक्षा और धनखड़ की विदाई ने यह संदेश दे दिया है कि भाजपा अब जाटों की आवाज को दबाना चाहती है। राजस्थान में भाजपा के कई स्थानीय जाट नेता भी इस मुद्दे पर असहज हैं। हरियाणा में दुष्यंत चौटाला जैसे नेता खुलकर मैदान में आ सकते हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जयंत चौधरी पहले ही मजबूत स्थिति में हैं।


भाजपा के लिए अब यह सवाल नहीं है कि जाट समाज नाराज है या नहीं, बल्कि सवाल यह है कि इस नाराजगी की भरपाई कैसे की जाए? क्या सरकार अब सत्यपाल मलिक को मरणोपरांत कोई राजकीय सम्मान देगी? क्या धनखड़ को किसी और रूप में पुनः प्रतिष्ठित किया जाएगा? या फिर यह मान लिया जाए कि भाजपा ने एक ऐसे वोट बैंक को स्वयं अपने हाथों से दूर कर दिया है, जो दशकों से उसकी नींव था?

यह कोई छोटी बात नहीं कि दो शीर्षस्थ जाट नेताओं के साथ इस तरह का व्यवहार हो और पूरे समाज में सन्नाटा न छाए। जाट समाज चुप है, लेकिन यह चुप्पी असहज करने वाली है। यह चुप्पी तूफान से पहले की खामोशी हो सकती है। अगर भाजपा समय रहते इस चूक को नहीं संभालती, तो 2029 का लोकसभा चुनाव उन राज्यों में भाजपा के लिए मुश्किलों भरा हो सकता है, जहां जाटों की भूमिका निर्णायक है। सत्यपाल मलिक का अपमान और धनखड़ की विदाई, ये दो घटनाएं जाट समाज के आत्मसम्मान से जुड़ चुकी हैं। अब भाजपा के सामने एक ही रास्ता है कि वह सम्मान के साथ जाट नेताओं से संवाद स्थापित करे । जाटो की नाराजगी एक हद तक तभी दूर हो सकती है, जब उप राष्ट्रपति पद पर किसी जाट नेता को खड़ा किया जाए । क्या बदली परिस्थिति में सतीश पूनिया की लॉटरी खुल सकती है ? अगर इस कौम की नाराजगी दूर नही की गई तो जाट समाज सिर्फ इतिहास नहीं बदलता, सत्ता बदलने का माद्दा भी रखता है।


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