भाजपा की कमजोर कन्धों पर सत्ता की पालकी
भाजपा की कमजोर कन्धों पर सत्ता की पालकी
—सत्य पारीक
छोटा अखबार।
प्रदेश भाजपा ने " कमजोर कन्धों पर सत्ता की पालकी " उठाने की कोशिश की है आगामी 2023 के होने वाले चुनाव की । सत्ता में भाजपा की वापसी लाने के चार नहीं बल्कि तीन कहार के रूप में जिन नेताओं के कंधों का इस्तेमाल किया गया है वो कमजोर ही नहीं बल्कि जर्जर हैं । जैसे चूरू जिले के ही वरिष्ठ विधायक राजेन्द्र राठौड़ अब तक उपनेता प्रतिपक्ष बने हुए थी उन्हें प्रमोट करके नेता प्रतिपक्ष थोपा गया है । उनसे पहले उनके जिले से ही राजनीति में जिलाबदर हुए डॉ सतीश पूनियां को प्रदेशाध्यक्ष के पद से धकिया कर उपनेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई है ।
पूनियां का तीन साल से अधिक का कार्यकाल बेहद निराशाजनक रहा था इसी कारण चुनावी साल में ही उन्हें पद से रुखसत कर संगठन के कार्यो से अनभिज्ञ चितौड़ के सांसद सी पी जोशी को कमान सौंपी गई है ।कुल मिला कर तीनों के नाम ही ऐसे हैं जैसे कि " रमी के खिलाड़ी ताश की कई गडिया " मिला कर खेलते हैं । राठौड़ और पूनियां की जोड़ी उस समय फ्लॉप साबित हुई थी जब कांग्रेस की सरकार को उखाड़ फेंकने का इन दोनों ने ऑपरेशन लोट्स चलाया था । जिसमें गहलोत सरकार के उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट व केंद्रीय राज्य मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत अपने अपने मंसूबे पाल कर दिन में मुख्यमंत्री बनने के स्वप्न देखा करते थे ।
भाजपा राज्य की सत्ता से पांच साल से बाहर है जिसे सत्ता में वापसी लाने की योजना अगर वह सत्तारूढ़ कांग्रेस का विरोध करने के नाम पर लाना चाहती है तो उसे भूलना होगा कि गहलोत सरकार के विकास व मुफ़्त की बांटी गई रेवड़ियां के सामने भाजपा टिक पायेगी ये कहना बेहद कठिन है । मुख्यमंत्री गहलोत ने अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद बड़ी सोची समझी रणनीति के तहत छोड़ा था । उन्हें अपने गृह जिले के प्रतिद्वंद्वी गजेन्द्र सिंह को ठिकाने लगाने के साथ ही सचिन पायलट से भी राजनीतिक हिसाब चुकता करना है ।
अगर भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को चुनाव में भावी मुख्यमंत्री घोषित कर लड़ाई लड़ी तो गहलोत से कड़ी टक्कर होगी वरना तो भाजपा केवल चुनाव लड़ने की खाना पूर्ति ही करेगी । अगर राजे बाहर रहती है तो राज्य की राजनीति में चुनाव बाद व पहले क्या गुल खिलेंगे इसकी कल्पना किसी राजनेता को नहीं है ।
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