बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना....

 बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना....

.राहुल गोस्वामी

छोटा अखबार।

एक बुढिय़ा को सडक़ पार करवाने के बाद घर जाकर अपने पिता से एक युवक ने इतराते हुए कहा कि आज एक नेक काम करके आया हूं। पिता बोले इसमें नेक काम क्या हुआ यह तो बहुत ही साधारण सी बात है। इस पर बेटा झल्लाते हुए बोला नेक काम क्यों नही पिताजी, भला वो बुढिय़ा सडक़ पार करना ही नहीं चाहती थी। आज के मीडिया जगत की हालत भी कमोबेश इस युवक से जैसी ही प्रतीत हो रही है। 


हर पार्टी और बड़े नेता का स्वयं का सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म बना हुआ है जिसमें उनकी पल-पल की अपडेट होती है ऐसे मेेंं इनको ना प्रिंट मीडिया की गरज है और ना ही इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की ही। फिर भी राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा हो या भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा, गृहमंत्री अमित शाह या किसी बड़े भाजपा नेता की सभाएं ही क्यों ना हो, धक्के खाते और भूख-प्यास से परेशान होते मीडियाकर्मी इनकी कवरेज की मशक्कत में बड़ी से बड़ी चुनौती का सामना करने को तैयार रहते हैं। राजस्थान का मीडिया मानो सत्ता पक्ष और प्रतिपक्ष के कार्यक्रमों में बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना सी भूमिका निभा रहा है। आज शहर-शहर और गांव=गांव टायर ट्यूब पंचर रिपेयर वालों से कहीं ज्यादा यू-ट्यूब न्यूज रिपोर्टर आसानी से नजर आ जाएंगे। ऐसे में स्पेशल पॉलिसी के चलते प्राइवेट कंपनियों की खबरें नहीं छापने वाले बड़े अखबारों एवं चैनलों के प्रतिनिधियों की नए प्रोडेक्टर लांच करने वाली कंपनियों को अब कोई जरूरत नहीं, यू ट्यूब चैनल पब्लिसिटी के लिहाज से उनके लिए आज सबसे बेहतर विकल्प जो बन गया है। राजस्थान विधानसभा में सदन की कार्यवाही की कवरेज के लिए गिनती के रिपोर्टरों के प्रवेश पत्र बनाए जाते हैं और फोटो और वीडियो जर्नालिस्ट को सदन के बाहर ही खुले आसमान तले धूप और बारिश में खड़े रहकर कवरेज करना पड़ता है, लेकिन विशेष परिस्थितियों में विधानसभा में विकसित किए गए डिजिटल संग्रहालय की पब्लिसिटी करवाने को  पत्रकारों की भीड़ को ससम्मान बुलाया जाता है। इससे बड़ी अवसरवादिता का नजारा और कहां देखा जा सकता है। प्रोफेसर साहब विधानसभा को भी कॉलेज क्लॉस रूम की तरह चलाते हैं, हालांकि अनुशासन बनाए रखने के नाम पर इनका तल्ख रवैया ना प्रतिपक्ष को रास आ रहा है और ना ही सत्तापक्ष के ही एक धड़े को लेकिन फिर भी सदन की गरिमा बनाए रखना सबके लिए जरूरी है। समय और सुविधा के अनुसार राजनीतिक पार्टियां और नेता मीडिया का इस्तेमाल आसानी से कर लेते हैं। इस बीच पत्रकार इस मुगालते में जिंदगी जीते हैं कि फलां नेता मेरा खास है और नेता इस विश्वास से लबरेज होकर जिंदगी जीते हैं कि फलां पत्रकार मेरे एक बुलावे पर हाजिर हो जाता है, ठीक मारवाड़ी की इसकहावत की तरह कि म्हारे कोई और नहीं, थारे कोई ठोर नहीं। प्रदेश के संवेदनशील हाकम से पत्रकार आवासीय योजना का सपना पूरा होने की उम्मीद लगाए बैठे हैं लेकिन हालत इस कदर है कि ज्योति नगर में विधायक आवास प्रोजेक्ट को महज दो-ढाई साल में ही पूरा करने जा रही इस सरकार को जनप्रतिनिधियों की तो चिंता है लेकिन खबरनवीसों की नहीं, तभी तो पत्रकारों की आवासीय योजना का इंतजार लंबा होता जा रहा है। पत्रकारों को प्लॉट की चिंता सता रही है पर हाकम को पायलट की चिंता से नहीं उबर पा रहे हैं। पत्रकार जनता की आवाज हैं तो सरकार उसकी उम्मीद। जन=जन की आवाज को सरकार तक पहुंचाने वाले पत्रकारों की खुद की आवाज ही सरकार सुनने को तैयार नहीं तो आम आवाम की उम्मीदों का क्या। समय बहुत कम है महज दस-ग्यारह महीने बाद फिर से चुनाव। सरकार संवेदनशीलता दिखाए और सरस्वती पुत्रों की करूण पुकार सुने नहीं तो राजस्थान में यूं ही बारी-बारी से दो प्रमुख पार्टियों ं के सत्ता में काबिज होने का सिलसिला आगे भी जारी रहेगा।

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