इंटरनेट पर गंदी फिल्में देखते हो आप — नीति आयोग

इंटरनेट पर गंदी फिल्में देखते हो आप — नीति आयोग


छोटा अखबार।
समाचार सूत्रों के अनुसार गुजरात में एक दीक्षांत समारोह में भाग लेने गये नीति आयोग के सदस्य वीके सारस्वत ने पत्रकारों से बातचीत में बताया कि ये जितने नेता वहां जाना चाहते हैं वो किस लिए जाना चाहते हैं? वो जैसे आंदोलन दिल्ली की सड़कों पर हो रहा है। वो कश्मीर में सड़कों पर लाना चाहते हैं। और जो सोशल मीडिया है, वो उसको आग की तरह इस्तेमाल करता है। तो आपको वहां इंटरनेट ना हो तो क्या फर्क पड़ता है? और वैसे भी आप इंटरनेट में वहां क्या देखते हैं? क्या ई-टेलिंग हो रहा है वहां पे? वहां गंदी फिल्में देखने के अलावा कुछ नहीं करते आप लोग। पत्रकारों ने उनके इस बयान का मतलब पूछा तो उन्होंने कहा कि मैं ये बता रहा हूं कि अगर कश्मीर में इंटरनेट नहीं है तो उससे अर्थव्यवस्था पर कुछ खास फर्क नहीं पड़ता है। हालांकि इस बयान पर विवाद के बाद वीके सारस्वत ने कहा है कि उनके बयान को गलत संदर्भ में लिया गया है और यदि इससे किसी की भावनाएं आहत होती हैं तो वो इसके लिए माफ़ी मांगते हैं।



सारस्वत से पूछा की अगर भारत की वृद्धि के लिए दूरसंचार महत्वपूर्ण था। तो उन्होंने जम्मू कश्मीर में इंटरनेट सेवाओं को क्यों निलंबित कि। सवाल के जबाव में सारस्वत ने कहा कि कश्मीर में इंटरनेट बंद है। लेकिन क्या गुजरात में इंटरनेट उपलब्ध नहीं है? कश्मीर में इंटरनेट बंद करने का कारण अलग है। यदि अनुच्छेद 370 को हटाया जाना था और यदि कश्मीर को आगे ले जाना था तो हम जानते हैं कि वहां ऐसे तत्व हैं जो इस तरह की जानकारी का गलत तरीके से उपयोग करेंगे, जो कानून और व्यवस्था की स्थिति को प्रभावित करेगा।



वहीं दूसरी और सारस्वत से जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय कुलाधिपति के नाते विश्वविद्यालय के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि जेएनयू एक राजनीतिक युद्ध का मैदान बन गया है। उन्होने जेएनयू को एक वाम-झुकाव वाला संस्थान बताया और कहा कि 600 शिक्षकों में से 300 कट्टर वामपंथी समूह के हैं। जेएनयू को बंद करना कोई समाधान नहीं है। हम एक लोकतंत्र हैं और हमें लोकतांत्रिक तरीके से संघर्ष को हल करना होगा।



हमारी सरकार, शिक्षा विभाग और मेरे साथ इससे जुड़े सभी लोग उस दिशा में इसे सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं। हम ऐसे कठोर कदम नहीं उठा सकते। लेकिन 1980 के दशक में जब इंदिरा गांधी कुलाधिपति थीं तब इसी तरह के कारणों से जेएनयू 45 दिनों तक बंद रहा। उस समय तिहाड़ में 800 छात्र जेल गए थे। पिछले साल अक्टूबर से जेएनयू में काम बंद है। नुकसान अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहे हैं। हम लोगों को पैसा दे रहे हैं। लेकिन उनसे कोई आउटपुट नहीं है। हड़ताल के बावजूद सरकारी शिक्षकों को उनका बकाया मिल रहा है। आउटपुट क्या है? सब अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है।


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