एलआईसी निवेशकों के लिए ख़तरे की घंटी 

एलआईसी निवेशकों के लिए ख़तरे की घंटी 


छोटा अखबार।
बीमा मतलब एलआईसी। बीमा के क्षेत्र में एलआईसी विश्वास का दूसरा नाम है। लेकिन देश के वर्तमान माहौल में भारतीय जीवन बीमा निगम की साख में कमी आई है। देश में आर्थिक खबरों ने निवेशकों के लिए ख़तरे की घंटी बजा दी है। एलआईसी की वेबसाइट पर जारी सालाना रिपोर्ट के अनुसार भरोसे का प्रतीक माने जाने वाली कंपनी के पिछले पाँच साल के आंकड़े वाकई हैरान और परेशान करने वाले हैं।



पिछले पाँच साल में कंपनी के नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स दोगुने स्तर तक पहुँच गए हैं। मार्च 2019 तक एनपीए का ये आंकड़ों की बात करे तो निवेश के अनुपात में 6.15 फ़ीसदी के स्तर तक पहुँच गया है। जबकि 2014-15 में एनपीए 3.30 प्रतिशत के स्तर पर थे। दस का मतलब है कि पिछले पाँच वित्तीय वर्षों के दौरान एलआईसी के एनपीए में करीब 100 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। खबरों के अनुसार एलआईसी में करोड़ों ईमानदार लोग निवेश करते हैं।अगर सरकार ने एसआईसी की स्थिति पर गौर नहीं किया तो जनता का एलआईसी पर भरोसा टूट जायेगा। सामने आ रही ख़बरों से लोगों में घबराहट पैदा होती है और इसके गंभीर नतीजे हो सकते हैं।एलआईसी की 2018-19 की सालाना रिपोर्ट के अनुसार 31 मार्च 2019 को कंपनी के सकल एनपीए 24 हज़ार 777 करोड़ रुपये थे। वहीं कंपनी पर कुल देनदारी यानी कर्ज़ चार लाख करोड़ रुपये से अधिक का था। एलआईसी की कुल परिसंपत्तियाँ 36 लाख करोड़ रुपये की हैं।एलआईसी की हालत खराब इसलिए हुई है। क्योंकि जिन कंपनियों में उसने निवेश किया था उनकी माली हालत बेहद ख़राब हो गई है। कई कंपनियां तो दिवालिया होने की कगार पर है।इनमें दीवान हाउसिंग, रिलायंस कैपिटल, इंडियाबुल्स हाउसिंग फ़ाइनेंस, पीरामल कैपिटल और यस बैंक शामिल हैं।दीवान हाउसिंग में एलआईसी का एक्सपोज़र 6500 करोड़ से अधिक का है। वहीं रिलायंस कैपिटल में चार हज़ार करोड़ रुपये का एक्सपोज़र था। एबीजी शिपयार्ड, एमटेक ऑटो और जेपी ग्रुप में भी एलआईसी का काफ़ी अधिक एक्सपोज़र था।



आर्थिक पण्डितों के अनुसार ग़ैरबैंकिंग वित्तीय सेक्टर में हुई तबाही का बड़ा असर एलआईसी पर हुआ है। एलआईसी ने इन कंपनियों में पैसा लगाया था। अब इन एनबीएफ़सी के बेहाल होने से एलआईसी की सेहत भी बिगड़ गई है।वहीं खास बात यह कि एलआईसी के पास भारी मात्रा में नकदी है। इसलिए सरकार इसे अपने संकटमोचक के रूप में भी इस्तेमाल करती आ रही है। वितीय रूप से लड़खड़ा रही कई सार्वजनिक कंपनियों के शेयर ख़रीदकर एलआईसी ने इन्हें उबारा है। एलआईसी भी वही ग़लती कर रही है, जो कि कई सरकारी और निजी बैंकों ने की है। एलआईसी के एनपीए निजी क्षेत्र के बैंकों यस बैंक, एक्सिस बैंक और आईसीआईसीआई बैंक के एनपीए के क़रीब हैं।



पण्डितों का यह भी मानना है कि बही खाते की इस बिगड़ी सेहत का असर कंपनी पर ज़रूर दिखेगा और अगर ये एनपीए न होते तो बहीखाते में मुनाफ़े का आंकड़ा बढ़ा हुआ नज़र आता। सीधे तौर पर तो एलआईसी के ग्राहकों को डरने की ज़रूरत नहीं है। लेकिन कहीं न कहीं उनके वित्तीय हितों पर असर तो होगा ही।


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