मौहब्बत की दुकान का फायदा किसको

 मौहब्बत की दुकान का फायदा किसको

     

छोटा अखबार।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट ने एक दूसरे के लिए जो प्यार- मोहब्बत और भाईचारे की दुकान अचानक खोली है, उसने उन दावेदारों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है जो युवा है, मेहनती है,अपने इलाकों में जीतने की क्षमता रखते हैं और जिन्हें सर्वे में भी वर्तमान विधायकों से ज्यादा टिकट के योग्य माना गया। लेकिन जब बात खुद के समर्थकों के टिकट कटने पर आई,तो दोनों ने मिनटों में अपनी सालों से चल रही दुश्मनी को भुला दिया और नफरत की दुकान का शटर डाउन कर मौहब्बत की दुकान खोल ली। 


 गहलोत ने कह दिया कि उन्होंने उन विधायकों को फिर टिकट देने पर कोई आपत्ति नहीं की,जो सरकार गिराने के लिए मानेसर चले गए थे। बदले पायलट ने जवाब में कहा कि, उन्होंने भी उन जीतने वालों उन उम्मीदवारों के नामों पर कोई आपत्ति नहीं की, जो सोनिया गांधी और आलाकमान की अवमानना में शामिल थे। मीडिया की खबरों में काफी समय से कहा जा रहा था कि विभिन्न स्तरों पर कराए गए सर्वे में कांग्रेस के 50 विधायकों की टिकट कट सकते हैं,क्योंकि उनकी स्थिति कमजोर पाई गई है। इनमें गहलोत और पायलट दोनों के ही समर्थक शामिल थे। खुद गहलोत कह चुके हैं कि नाराजगी सरकार या उनके प्रति नहीं,कुछ विधायकों के प्रति है। फिर भी अगर ऐसे विधायकों को वापस टिकट गया गया,तो नुकसान तो कांग्रेस को ही होगा। लेकिन फिर भी दोनों स्क्रीनिंग कमेटी या सीईसी की  बैठक में एक- दूसरे के उम्मीदवारों का विरोध करते -कराते, इससे बेहतर यह था कि एक-दूसरे से हाथ मिलाकर सभी नाम क्लियर करा लेते। ताकि विरोध के स्वर दोनों ओर से नहीं उठे। अपने-अपने टिकटों  के लिए सचिन नाकारा, निकम्मा और गद्दार जैसे आभूषणों को भूल गए, तो गहलोत इस बात को कि ने पायलट के नेतृत्व में उनकी सरकार गिराने की कोशिश की गई थी और बचाने के महीनों तक विधायकों के साथ वो भी होटलों में रहे। 

        जाहिर है दोनों में प्यार- मौहब्बत की दुकान खुलवाने में गांधी परिवार की ही पूंजी लगी होगी, क्योंकि यह खुला सच है कि अगर दोनों में इस तरह को समझौता ( भले ही मजबूरी या स्वार्थ का हो ) न होता, तो राजस्थान में कांग्रेस का मुकाबला भाजपा से ज्यादा कांग्रेस से ही होता। आज प्रियंका गांधी अशोक गहलोत को नुभवी और पायलट को युवा बता कर राजस्थान में अनुभव और युवा का जो गणित समझा कर गई है, उसने भी इस बात को पुख्ता किया है। लेकिन इसने कांग्रेस और राहुल गांधी के उन तमाम दावों की पोल खोल दी,जो राहुल गांधी समय-समय पर करते रहे हैं। यही कि 50 प्रतिशत युवाओं को टिकट दिए जाएंगे। टिकट सिर्फ जिताऊ उम्मीदवारों को ही मिलेगा। टिकट सर्वे के आधार दिए जाएंगे। किसी की सिफारिश पर टिकट नहीं मिलेंगे। मैंने तो अपने ब्लॉग में पहले भी लिखा था कि कांग्रेस में सर्वे,रायशुमारी, पर्यवेक्षकों को भेजना  सिर्फ नौटंकी और दिखावा होता है। आखिर में टिकट कुछ नेताओं के चाहने और उनके चहेतों को ही कोई मिलते हैं। 

गहलोत ने तो मानेसर जाने वाले विधायकों के टिकटों पर आपत्ति नहीं की है,लेकिन क्या पायलट उनकी तरह 25 सितम्बर के शिल्पकार शांति धारीवाल,महेश जोशी और धर्मेंद्र राठौड़ के नाम को हरी झंडी दे देंगे ?क्या आलाकमान अपने खिलाफ बगावत करने वालों को फिर मैदान में देखना पसंद करेगा? क्या खड़गे और माकन उन चेहरों को उम्मीदवारों के रूप में देखना गवारा करेंगे जिन्होंने दोनों को बेइज्जत कर वापस दिल्ली भेजा था। कहा जा रहा है कि गहलोत इन तीनों को हर हाल में टिकट दिलाना चाहते हैं,ताकि ये मैसेज जाए कि दिल्ली में आज भी उनकी चलती है। इसीलिए वो बार- बार माकन से मिल रहे हैं,क्योंकि उन्हें साध लिया तो सोनिया-राहुल भी मान सकते हैं।हालांकि आम कांग्रेसी को अभी भी इस सवाल का जवाब नहीं मिला है कि उस समय बगावत बड़ी किसकी थी पायलट की या गहलोत की। क्योंकि थी तो दोनों कांग्रेस के ही खिलाफ।

ओम माथुर


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