कोरोना और भारतीय परम्परा
कोरोना और भारतीय परम्परा सोशल मीडिया से छोटा अखबार। ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपिवा। यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्यभ्यन्तरः शुचिः॥ ॐ पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु।। जिस छुआछूत को बदनाम कर-कर के उपन्यासों में फिल्मों में ब्राह्मणों को झूठा और फर्जी बदनाम किया गया, वहीं छुआछूत आज विश्व की ब्रह्मास्त्र बनकर रक्षा कर रहा है। आपने अपने शास्त्रों का और ब्राह्मणों का खूब मज़ाक उड़ाया था। जब वह यह कहते थे कि जिस व्यक्ति का आप चरित्र न जानते हों उससे जल या भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए। क्योंकि आप नहीं जानते कि अमुक व्यक्ति किस विचार का है, क्या शुद्धता रखता है, कौन से गुण प्रधान का है, कौन सा कर्म करके वह धन ला रहा है, शौच या शुचिता का कितना ज्ञान है, किस विधा से भोजन बना रहा है, उसके लिए शुचिता या शुद्धता के क्या मापदंड हैं इत्यादि। आपने ब्राह्मणों पर जातिवादी और छुआछूत बढ़ाने का आरोप लगाया और कहा के इन्हें अन्य व्यक्तियों के छाया पड़ने से भी छूत लगता है। किन्तु वर्तमान समय में एक करोना वायरस की वजह से सभी को एक मीटर तक की दूरी बनाए रखने की हिदायत पूरा