नाराजगियों के बारूद में विस्फोट, मुस्लमान और संघ को तवज्जोह नहीं

 नाराजगियों के बारूद में विस्फोट, मुस्लमान और संघ को तवज्जोह नहीं


अशोक शर्मा 


छोटा अखबार।

राजस्थान में राजनीतिक महाभारत शुरू हो गई है। कांग्रेस और भाजपा दोनों की सेनाएं मैदान में उतर रही हैं लेकिन दोनों पार्टियों ने  उम्मीदवारों को टिकट देने में जो पैतरेबाजी की, उससे पार्टियों में आपस में ही घमासान मच गया। कांग्रेस में कम, भाजपा में बहुत ही ज्यादा। इस समय भाजपा की हालत सबसे ज्यादा खराब है। मात्र चार दिनों में ही चित्तौड़गढ़, राजसमंद, कोटा, उदयपुर, सोजत, अलवर, बूंदी, सांगानेर और छबडा में विरोधी भाजपाई सड़कों पर उतर आए हैं, वे बहुत ज्यादा गुस्से में हैं। इनमें सबसे ज्यादा गुस्सा चित्तौड़गढ़ के सांसद और भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी के प्रति है।

सीपी जोशी का पुतला फूंक दिया तो उधर राजसमंद में भाजपा के आफिस में तोडफोड कर दी। यद्यपि दोनों ही पार्टियों के लगभग 70 प्रतिशत उम्मीदवार घोषित हो गए हैं और यहां एक मजेदार बात देखने को मिली कि जहां भाजपा में वसुन्धरा समर्थक लगभग सभी उम्मीदवारों को टिकट दे दिया गया वहीं दूसरी ओर कांग्रेस में गहलोत के खास तीनों मंत्रियों के टिकटों का अभी तक अता-पता नहीं। आश्चर्य यह भी कि भाजपा ने जिन 41 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की उसमें एक भी मुस्लिम केंडिडेट नहीं है, जबकि कांग्रेस की सूची में अब तक कई नाम आ गए। भाजपा की अब तक जारी की गई सूचियों में 10 महिलाओं को टिकट दिया गया जबकि कांग्रेस द्वारा जारी सूची में 27 प्रतिशत महिलाओं। लेकिन पूरे राजस्थान के 200 विधानसभा क्षेत्रों में कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं जहां दोनों ही पार्टियों में नाराजगियों की जलकुंभी न फैली हो। अब नाम घोषित हो गए हैं तो जिन्हें टिकट नहीं मिला वो तथा उनके समर्थक विद्रोह के मार्ग हैं, और यह स्थिति दोनों पार्टियों में है।

इस बार न 70 पार की दलील काम आई न युवा चेहरों को मौका का वादा काम आया और न ही कोई और चालाकी चली। अंततः दोनों पार्टियों को पुराने खिलाड़ियों को ही टिकट देने पडे। भाजपा की तो सारी पूर्व प्लानिंग ही फेल हो गई। लेकिन एक काम ठीक हुआ कि अब केन्द्र की अकड़ भी थोडी नर्म पड गई। अंततः वसुन्धरा को उसके समर्थकों को टिकट देकर खुश करना ही पड़ा। लेकिन यह केन्द्र की मजबूरी थी, सहयोग नहीं, क्योंकि वसुन्धरा ने भी ठान ली थी कि वह अपने समर्थकों को टिकट दिये बिना आगे नहीं बढ़ेंगी। सो वही हुआ। अगर केन्द्र ऐसा नहीं करता तो राजस्थान में भाजपा का जीतना तो बहुत दूर की बात, पांव तक नहीं जम पाते। इसलिए चुपचाप समझौता हुआ।एक और बात कि राजस्थान भाजपा ने इस बार संघ को भी कोई तवज्जोह नहीं दी जबकि संघ ने लगभग एक दर्जन सीट पर अपने नाम सुझाए थे, लेकिन भाजपा उससे कन्नी काट गई।

अब सबसे पहले बात सूर्यकांता व्यास की। पिछ्ले माह पीएम मोदी जोधपुर आए थे तब वे सूर्यकांता व्यास से भी मिले। श्रीमती व्यास ने मोदी जी से अनुरोध किया कि उनका टिकट नहीं काटें, लेकिन केन्द्र से आई लिस्ट में व्यास का नाम नहीं था। व्यास को यह सजा अशोक गहलोत की तारीफ करने की मिली। चूंकि गहलोत ने उनकी कुल देवी के मंदिर के लिए पांच करोड रुपए की मंजूरी दे दी थी, जिस पर श्रीमती व्यास ने गहलोत की भरपूर प्रशंसा कर दी। बस, यही मोदी जी को चुभ गई और इसका परिणाम यह हुआ कि श्रीमती व्यास को भाजपा के टिकट से महरूम कर दिया गया।लगभग 90 साल की श्रीमती व्यास अब मोदी जी के इस व्यवहार से बेचैन हैं। ऐसे ही उधर 90 साल के कैलाश मेघवाल किनारे किये हुए हैं। उन्होंने भी कभी गहलोत की तारीफ कर दी थी सो उन्हें भी कोई चांस नहीं दिया गया।

इस बार न 70 पार की दलील काम आई न युवा चेहरों को मौका का वादा काम आया और न ही कोई और चालाकी चली। अंततः दोनों पार्टियों को पुराने खिलाड़ियों को ही टिकट देने पडे। भाजपा की तो सारी पूर्व प्लानिंग ही फेल हो गई। लेकिन एक काम ठीक हुआ कि अब केन्द्र की अकड़ भी थोडी नर्म पड गई। अंततः वसुन्धरा को उसके समर्थकों को टिकट देकर खुश करना ही पड़ा। लेकिन यह केन्द्र की मजबूरी थी, सहयोग नहीं, क्योंकि वसुन्धरा ने भी ठान ली थी कि वह अपने समर्थकों को टिकट दिये बिना आगे नहीं बढ़ेंगी। सो वही हुआ। अगर केन्द्र ऐसा नहीं करता तो राजस्थान में भाजपा का जीतना तो बहुत दूर की बात, पांव तक नहीं जम पाते। इसलिए चुपचाप समझौता हुआ।एक और बात कि राजस्थान भाजपा ने इस बार संघ को भी कोई तवज्जोह नहीं दी जबकि संघ ने लगभग एक दर्जन सीट पर अपने नाम सुझाए थे, लेकिन भाजपा उससे कन्नी काट गई।

अब सबसे पहले बात सूर्यकांता व्यास की। पिछ्ले माह पीएम मोदी जोधपुर आए थे तब वे सूर्यकांता व्यास से भी मिले। श्रीमती व्यास ने मोदी जी से अनुरोध किया कि उनका टिकट नहीं काटें, लेकिन केन्द्र से आई लिस्ट में व्यास का नाम नहीं था। व्यास को यह सजा अशोक गहलोत की तारीफ करने की मिली। चूंकि गहलोत ने उनकी कुल देवी के मंदिर के लिए पांच करोड रुपए की मंजूरी दे दी थी, जिस पर श्रीमती व्यास ने गहलोत की भरपूर प्रशंसा कर दी। बस, यही मोदी जी को चुभ गई और इसका परिणाम यह हुआ कि श्रीमती व्यास को भाजपा के टिकट से महरूम कर दिया गया।लगभग 90 साल की श्रीमती व्यास अब मोदी जी के इस व्यवहार से बेचैन हैं। ऐसे ही उधर 90 साल के कैलाश मेघवाल किनारे किये हुए हैं। उन्होंने भी कभी गहलोत की तारीफ कर दी थी सो उन्हें भी कोई चांस नहीं दिया गया।

कल ही भोपाल में जोरदार वाकिया घट गया। वहां कांग्रेस के नाराज कार्यकर्ताओं ने दिग्विजयसिंह की फ़ोटो को जमकर जूते मारे फिर उस पर गोबर पोत दिया। नाराज कांग्रेसियों का गुस्सा यहीं शान्त नहीं हुआ, उन्होंने दिग्विजयसिंह के पुत्र जयवर्धन सिंह का भी पुतला जलाया तथा भोपाल स्थित कांग्रेस कार्यालय में जमकर तोडफोड कर दी। उधर छत्तीसगढ़ में बीजेपी नेता को गोली मार दी गई। राजस्थान में चित्तौड़गढ़ के पूर्व विधायक चन्द्रभान सिंह आक्या ने चित्तौड़गढ़ के सांसद सीपी जोशी पर आरोप लगाया कि सीपी ने मेरा टिकट कटवा कर अपनी खुन्नस निकाली है। सीपी के घर पत्थर भी फेंके गए। नरपत सिंह राजवी, जो अब तक जयपुर के विद्याधर नगर के विधायक रहे थे, उनकी जगह दीया कुमारी को टिकट देकर राजवी को चित्तौड़गढ़ भेज दिया। पहले तो केन्द्र उन्हें टिकट देने के लिए तैयार ही नहीं था। लेकिन राजवी की राजनीतिक ताकत को देखते हुए उन्हें चित्तौड़गढ़ से टिकट दिया, लेकिन यहां भी उनका विरोध शुरू हो गया। चन्द्रभान ने सीधा आरोप लगाया कि सीपी जोशी और उनकी तकरार लम्बे समय से चल रही है और उन्होंने ही मुझसे खार निकाली है। 

यहां पर एक और मजेदार बात यह कि भाजपा अब तक नारी शक्ति वंदना के गीत गा रही थी लेकिन अब जब टिकट देने का समय आया तो मात्र 10 महिलाओं को टिकट दिया। एक और आश्चर्य की बात कि राजेन्द्र राठौड़ चूरू से टिकट चाह रहे थे लेकिन उन्हें तारानगर भेज दिया। जिस सतीश पूनिया को नेता प्रतिपक्ष से पदावनत कर दिया गया, वही अब  कह रहे हैं कि मोदी जी के नेतृत्व में भाजपा राजस्थान में 150 सीटों पर जीत हासिल कर लेगी। यहां सतीश हवा में कुछ ज्यादा ही उड लिये हैं। इधर, अजमेर जिले के किशनगढ़ में इस बार भाजपा को पसीने आ सकते हैं तो अजमेर में भी पुराने खिलाड़ियों को ही टिकट दिये जाने पर नाराज भाजपाई तयशुदा खाई खोदेंगे। चूंकि अजमेर में पिछले 20 साल से दो ही नाम चल रहे हैं, एक वासुदेव देवनानी और दूसरा अनिता भदेल। लेकिन उत्तर में इस बार देवनानी के खिलाफ वैश्य समाज एकजुट है सो कुछ कहा नहीं जा सकता। अब इंतजार कांग्रेस कैंडिडेट का है कि यहां की दोनों सीटों पर किसे टिकट दिया जाता है, और उसका भाजपा पर कितना असर पड़ेगा, यह कांग्रेस के उम्मीदवार घोषित होने के बाद पता चलेगा कि वे उम्मीदवार भाजपा के घोषित उम्मीदवारों से वजनी हैं या नहीं।

वैसे मोदी जी का भी जवाब नहीं। हाल ही में वे ग्वालियर गए। सिंधिया स्कूल के 120 वें स्थापना दिवस समारोह में भाग लेने। वहां उन्होंने कहा कि ज्योतिरादित्य सिंधिया हमारे गुजरात के दामाद हैं। जबकि हकीकत यह है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को पिछले चुनाव में कमलनाथ सरकार गिराने के लिए यूज करने के बाद किनारे कर दिया गया और आज भी वे यूज ही हो रहे हैं। इस बार उनके सभी 20 समर्थकों को टिकट नहीं दिया। इसे कहते हैं भीतर मारो और बाहर प्यार जताओ। जो मोदी जी ने कर दिखाया। फिलहाल दोनों ही पार्टियां जोर आजमाइश कर रही हैं। 


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