ये लोकतंत्र में सबसे घटिया और गंदा कदम है — चिदंबरम

ये लोकतंत्र में सबसे घटिया और गंदा कदम है — चिदंबरम


छोटा अखबार।
अगस्‍त 2019 में जम्‍मू कश्‍मीर का विशेष दर्जा खत्म किए जाने के बाद से ही नजरबंद जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्रियों उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के खिलाफ जन सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत मामला दर्ज किया गया है। इनके साथ दो नेताओं पर भी पीएसए लगाया गया है। जिनमें नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के वरिष्ठ नेता अली मोहम्मद सागर और पीडीपी के नेता सरताज मदनी शामिल हैं।



सभी नेता पिछले साल पांच अगस्त के बाद से एहतियातन हिरासत में रखे गए थे। अब इन पर जन सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) लगा दिया गया है। पुलिस के साथ पहुंचे मजिस्ट्रेट ने महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला के आवास पर जाकर उन्‍हें इस आदेश के बारे में जानकारी दी और पीएसए के तहत जारी वारंट सौंपा।
पीएसए लगने के बाद महबूबा मुफ्ती के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट कर कहा कि इस तानाशाही सरकार से राज्य के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों पर पीएसए जैसा कठोर कानून लगाने की उम्मीद कर सकते हैं। जिसने नौ साल के बच्चे पर भी देशद्रोही टिप्पणी के लिए केस किया हो। देश के मूल्यों को अपमान किया जा रहा है। ऐसे में हम कब तक दर्शक बने रहेंगे। वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने भी इस कदम की आलोचना की है।


आपको बतादें कि उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती को छह महीने एहतियातन हिरासत में लिए जाने की अवधि गुरुवार को समाप्त हो रही थी। उमर के पिता जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री रह चुके फारूक अब्दुल्ला पहले से ही पीएसए के तहत बंद हैं। उन पर 17 सितंबर, 2019 को ही पीएसए लगा दिया गया था। पीएसए उन लोगों पर लगाया जा सकता है, जिन्हें सुरक्षा और शांति के लिए खतरा माना जाता हो। 1978 में शेख अब्दुल्ला ने इस कानून को लागू किया था। 2010 में इसमें संशोधन किया गया था, जिसके तहत बगैर ट्रायल के ही कम से कम छह महीने तक जेल में रखा जा सकता है। राज्य सरकार चाहे तो इस अवधि को बढ़ाकर दो साल तक भी किया जा सकता है।



चिदंबरम ने ट्वीट कर कहा कि उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती और अन्य के खिलाफ सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) को गलत तरीके से इस्तेमाल किये जाने से बुरी तरह से आहत हूं। ये लोकतंत्र में सबसे घटिया और गंदा कदम है। आरोपों के बिना हिरासत में रखना लोकतंत्र में सबसे बुरा द्वेष है। जब अन्यायपूर्ण कानून पारित किए जाते हैं या अन्यायपूर्ण कानून लागू किए जाते हैं, तो लोगों के पास शांति से विरोध करने के अलावा और क्या विकल्प होता है।
उन्होने ये भी कहा कि प्रधानमंत्री का कहना है कि विरोध प्रदर्शन से अराजकता होगी और संसद और विधानसभाओं द्वारा पारित कानूनों का पालन करना होगा। वह इतिहास और महात्मा गांधी, मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला के प्रेरक उदाहरणों को भूल गए हैं। शांतिपूर्ण प्रतिरोध और सविनय अवज्ञा के माध्यम से अन्यायपूर्ण कानूनों का विरोध किया जाना चाहिए। वह सत्याग्रह है।


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