दिल्ली में जो हुआ वह किसानों के क्षणिक उत्तेजना का प्रदर्शन भर था
दिल्ली में जो हुआ वह किसानों के क्षणिक उत्तेजना का प्रदर्शन भर था अपूर्वानंद छोटा अखबार। 26 जनवरी को पूरे देश में प्रदर्शन हुए। दिल्ली में खासकर। किसी हिंसा की खबर नहीं आई। दिल्ली में जो हुआ वह पिछले कई महीनों से सब्र बांधे किसानों के एक हिस्से की क्षणिक उत्तेजना का प्रदर्शन भर था जो अराजक कहकर इसकी आलोचना कर रहे हैं उनसे पूछा जाना चाहिए कि ऐसा विरोध कैसे हो और हो तो वह किस काम का जिससे हुजूर की नींद में खलल न पड़े? आंदोलन जब इतना व्यापक और इतनी तरह के लोगों के साथ होता है तो उसमें बहुत कुछ होगा जो तय नहीं था। सामूहिक ऊर्जा को संचालित करना आसान नहीं। यह ज़रूर नेताओं का काम है। लेकिन अगर एक हिस्सा तयशुदा रास्ते से अलग चल पड़ता है तो इससे पूरा आंदोलन गलत नहीं हो जाता आंदोलन लोरी नहीं है, वह सत्ता को झकझोरने के लिए ही किया जाता है। उसका शाब्दिक अर्थ भी यही है। वह स्थिरता, जड़ता को तोड़ता है। कर्णप्रिय वह हो, आवश्यक नहीं। सबसे आख़िरी या पहला सवाल तो यही है कि यह परिस्थिति आई क्यों? किसान घरों से निकले क्यों? दिल्ली की दहलीज तक आए क्यों? इसके लिए उन्हें किसने मजबूर किया? सरकार वे कानून बनाए क्य