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लॉकडाउन में भारतीय अरबपतियों की संपत्ति 35 फीसदी बढ़ी

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  लॉकडाउन में भारतीय अरबपतियों की संपत्ति 35 फीसदी बढ़ी छोटा अखबार। विश्व आर्थिक मंच की दावोस एजेंडा शिखर बैठक में ऑक्सफैम इंटरनेशनल की कार्यकारी निदेशक गैब्रिएला बुचर ने कहा कि महामारी की आर्थिक मार से उबरने में अरबों लोगों को एक दशक से अधिक का समय लग सकता है, जबकि मार्च 2020 के बाद से सबसे शीर्ष पर सिर्फ़ 10 अरबपतियों का धन आसमान छू लिया है। ऑक्सफैम की एक रिपोर्ट के अनुसार, कोरोना वायरस महामारी पिछले सौ वर्षों का सबसे बड़ा स्वास्थ्य संकट है। इसके कारण 1930 की महामंदी के बाद सबसे बड़ा आर्थिक संकट आया हुआ। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि भारत में लॉकडाउन के दौरान भारतीय अरबपतियों की संपत्ति 35 फीसदी बढ़ी है और 2009 से इन अरबपतियों की संपत्ति 90 फीसदी बढ़कर 422.9 अरब डॉलर हो गई है, जिसके बाद भारत अरबपतियों की संपत्ति के मामले में विश्व में अमेरिका, चीन, जर्मनी, रूस और फ्रांस के बाद छठे स्थान पर पहुंच गया है।

दिल्ली में जो हुआ वह किसानों के क्षणिक उत्तेजना का प्रदर्शन भर था

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  दिल्ली में जो हुआ वह किसानों के क्षणिक उत्तेजना का प्रदर्शन भर था अपूर्वानंद छोटा अखबार। 26 जनवरी को पूरे देश में प्रदर्शन हुए। दिल्ली में खासकर। किसी हिंसा की खबर नहीं आई। दिल्ली में जो हुआ वह पिछले कई महीनों से सब्र बांधे किसानों के एक हिस्से की क्षणिक उत्तेजना का प्रदर्शन भर था जो अराजक कहकर इसकी आलोचना कर रहे हैं उनसे पूछा जाना चाहिए कि ऐसा विरोध कैसे हो और हो तो वह किस काम का जिससे हुजूर की नींद में खलल न पड़े? आंदोलन जब इतना व्यापक और इतनी तरह के लोगों के साथ होता है तो उसमें बहुत कुछ होगा जो तय नहीं था। सामूहिक ऊर्जा को संचालित करना आसान नहीं। यह ज़रूर नेताओं का काम है। लेकिन अगर एक हिस्सा तयशुदा रास्ते से अलग चल पड़ता है तो इससे पूरा आंदोलन गलत नहीं हो जाता आंदोलन लोरी नहीं है, वह सत्ता को झकझोरने के लिए ही किया जाता है। उसका शाब्दिक अर्थ भी यही है। वह स्थिरता, जड़ता को तोड़ता है। कर्णप्रिय वह हो, आवश्यक नहीं। सबसे आख़िरी या पहला सवाल तो यही है कि यह परिस्थिति आई क्यों? किसान घरों से निकले क्यों? दिल्ली की दहलीज तक आए क्यों? इसके लिए उन्हें किसने मजबूर किया? सरकार वे कानून बनाए क्य
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 छात्रवृत्ति के लिए आवेदन पत्र आमंत्रित 25 फरवरी तक छोटा अखबार। आयुक्तालय कॉलेज शिक्षा, राजस्थान, जयपुर में संस्था प्रधान (महाविद्यालय) से आवेदन पत्र मय सॉक्टकॉपी ब25 फरवरी, 2021 को सायं 5 बजे तक प्राप्त किये जाएंगे। आयुक्त कॉलेज शिक्षा संदेश नायक ने बताया कि आवश्यकता एवं योग्यता छात्रवृत्ति, महिला योग्यता छात्रवृत्ति, उर्दू छात्रवृत्ति, मृतक राज्य कर्मचारियों के बच्चों को देय छात्रवृत्ति, ललित कला छात्रवृत्ति (स्कूल ऑफ आर्टस/संगीत संस्थान) राजस्थान के पूर्व सैनिकों को प्रतिभावन पुत्रियों को देय छात्रवृत्ति, भारत पाक व चीन युद्ध में मृतक व अपंग सैनिकों के बच्चों और उनकी विधवओं को छात्रवृत्ति, कारगिल कार्यवाही में शहीद सैनिकों के आश्रितों को देय छात्रवृत्ति, मिलीट्री देहरादून (भारतीय सैन्य महाविद्यालय) छात्रवृत्ति, स्वतंत्रता सैनानियों के बच्चों को देय छात्रवृत्ति के लिए महाविद्यालय में 15 फरवरी 2021 की सांय 5 बजे तक आवेदन पत्र प्राप्त किए जाएंगे।  उन्होंने यह भी बताया कि छात्रवृत्तियों के सम्बन्ध में नियम व शर्तो की पूर्ण जानकारी व आवेदन फार्म विभाग की वेबसाईट http://www.hte.rajasthan.

मुख्यमंत्री का जनहित में सकारात्मक निर्णय

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 मुख्यमंत्री का जनहित में सकारात्मक निर्णय छोटा अखबार। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राज्य में पेट्रोल एवं डीजल पर लगने वाले वैट की दर में 2 प्रतिशत की कमी कर पेट्रोल एवं डीजल की बढ़ती कीमतों से लोगों को बड़ी राहत दी है। इस संबंध में वित्त विभाग ने आदेश जारी कर दिए हैं। यह आदेश 28 जनवरी रात 12 बजे से प्रभावी होंगे। कोविड-19 महामारी के कारण आर्थिक गतिविधियों के प्रभावित होने तथा राजस्व में आई कमी के बावजूद मुख्यमंत्री ने आमजन के हित में यह महत्वपूर्ण निर्णय किया है। इससे आमजन के साथ-साथ ट्रांसपोर्ट, इंफ्रास्ट्रक्चर, रियल एस्टेट एवं अन्य व्यवसाय को भी काफी राहत मिलेगी। वैट की दरों में कमी से राज्य सरकार को प्रतिवर्ष राजस्व में अनुमानतः एक हजार करोड़ रूपए की कमी आयेगी।  गहलोत ने कहा है कि अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर क्रूड ऑयल के दाम लंबे समय तक न्यूनतम स्तर पर होने के बावजूद पेट्रोल-डीजल के दाम उच्चतम स्तर पर होने से महंगाई बढ़ रही है और आमजन को आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। मुख्यमंत्री ने कहा है कि भारत सरकार द्वारा वर्तमान में पेट्रोल पर 32 रुपये 98 पैसे प्रति लीटर तथा डीजल पर 31 रुपये 83

ग्रामपंचातों को अब नहीं मिलेगे 10—10 लाख रुपये

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  ग्रामपंचातों को अब नहीं मिलेगे 10—10 लाख रुपये छोटा अखबार। राज्य सरकार ने ग्रामपंचायतों में पूरानी व्यवस्था लागू करदी है। इस व्यवस्था के तहत सरपंचों से एक बार फिर से वित्तीय अधिकार वापस ले लिये है। राज्य में अब स्टेट फाइनेंस कमीशन का पैसा सीधा पंचायतों के खातों में ट्रांसफर नहीं होगा। अब पहले की तरह वित्त विभाग के पीडी खाते से पंचायतों को पैसा लेना होगा।  राज्य में ग्रामपंचायत के विकास के लिये पुरानी व्यवस्था को बहाल करने से सरपंचों के वित्तीय अधिकारों में कटौती हुई है। पंचायतों के पैसों का हिसाब किताब वित्त विभाग के पास रहेगा। राज्य सरकार द्वारा पुरानी व्यवस्था लागू करने से सरपंचों की मनमानी नहीं चलेगी वहीं  गांवों के विकास कार्यों में होन वाली धांधली से भी निजात मिलेगी। अब सरपंचों को विकास कार्य के रुपये यूसी, सीसी जारी करने के बाद ही मिलेगा। अब तक विकास कार्यो का सत्यापन सरपंच स्तर पर होता था और भुगतान भी। लेकिन पुरानी व्यवस्था पुन: लागू होने से विकास कार्यो का भौंतिक सत्यापन विभाग द्वारा किया जायेगा इसके बाद कार्य का भूगतान किया किया जाएगा।

भाजपा विधायक ने खड़ा किया नया विवाद, किसानों को बताया उग्रवादी और लुटेरे

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  भाजपा विधायक ने खड़ा किया नया विवाद, किसानों को बताया उग्रवादी और लुटेरे छोटा अखबार। राज्य में भाजपा के विधायक मदन दिलावर ने शनिवार को यह कहकर नया विवाद खड़ा कर दिया कि देश को नष्ट करने की इच्छा रखने वाले उग्रवादी और लुटेरे केंद्र के नए कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों में संभवत: शामिल हो गए हैं। दिलावर ने आरोप लगाते हुए कहा कि तथाकथित किसानों को देश की चिंता नहीं है। वे स्वादिष्ट व्यंजनों के अलावा अन्य विलासिताओं का आनंद ले रहे हैं। पिकनिक मना रहे हैं। समाचार सूत्रों के अनुसार जारी एक वीडियो में बयान दिया कि प्रदर्शनकारी किसान प्रदर्शन स्थल पर मुर्गे-मुर्गियों का मांस और बिरयानी खाकर बर्ड फ्लू फैलाने का षड्यंत्र रच रहे हैं। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने मदन दिलावर की उपरोक्त टिप्पणी को भाजपा की विचारधारा करार दिया है। 

किसानों ने सरकार के संकेत को किया ख़ारिज

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 किसानों ने सरकार के संकेत को किया ख़ारिज  छोटा अखबार । किसान संगठनों ने शनिवार को कहा कि केंद्र ने कृषि कानूनों का सुप्रीम कोर्ट के ज़रिए हल निकालने की जो बात कही है वो इस मुद्दे को लंबा खींच कर आंदोलन को पटरी से उतारने के लिए सरकार की एक चाल है। सभी यूनियनों ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट पर छोड़ने के सरकार के संकेत को ख़ारिज कर दिया है। भारतीय किसान यूनियन के राज्य सचिव शिंगारा सिंह मान ने पत्रकारों को बताया कि सुप्रीम कोर्ट पर इस मुद्दे को छोड़ने का सुझाव बताता है कि सरकार चल रहे विवाद का हल खोजने में देरी करना चाहती है। उनका इरादा केवल इस मुद्दे को लंबा खींचना है और हमारी मांगों को पूरा नहीं करना है। सरकार किसान लोगों के आंदोलन को दबाना चाहती है। हमने पहले ही सरकार के सुझाव को ख़ारिज कर दिया है। मान ने कहा कि सरकार की मंशा बहुत स्पष्ट है। वे अदालतों को शामिल करके किसान आंदोलन को तोड़ना चाहते हैं। शिंगारा सिंह कहते हैं कि बीकेयू अन्य संगठनों के साथ सभी विवादित कृषि कानूनों को वापस लिए जाने और सभी राज्यों में सभी फ़सलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकारी ख़रीद को एक क़ानूनी अधिकार बनान